Pages

Saturday, April 30, 2011

चलते चलते....

चलते चलते राहे राहोंमे खुदही थमने लगी
चलते चलते राहे अब मंजिले लगने लगी....

उनकी हसी ज़िन्दगीकी तमन्ना बनने लगी
उनकी मिठास हर सुबहोंमे अनकहे घुलने लगी
उनकी साथ अब हमेभी अच्छी लगने लगी
चलते चलते ये राहे अब मंजिले लगने लगी....

उनकी खुशबू अब हमारी सान्सोंमे बसने लगी
हवायेंभी उन्हें अब छूने को तरसने लगी
फासले भी उनके आने की दस्तक देने लगी
चलते चलते ये राहे अब मंजिले लगने लगी....

हमारी बाते सिर्फ उनकिही बाते करने लगी
निगाहोंमेभी अब उनकीही तस्वीर बसने लगी
ज़िन्दगी बहोत दिनोबाद प्यारिसी लगने लगी
चलते चलते ये राहे अब मंजिले लगने लगी....

Friday, April 1, 2011

तुमसेही...

कुछ दूर तुम भी साथ आओं,
चलते चलते हमारे दिलमे बस जाओ
हर सुबह सिर्फ तुमसेही हो,
सुबहकी पहली किरण से पहलेकी राहत बन जाओ

कुछ दूर तुम भी साथ आओं,
इन अजनबी फासलोंको अब तो भूल जाओ
हर शुरुवात सिर्फ तुमसेही हो,
हमे ज़िन्दगीसे मिलानेवाली प्यारिसी चाहत बन जाओ

कुछ दूर तुम भी साथ आओं,
उदास लम्होंमे हमारी मुस्कान बन जाओ
हर ख़ुशी सिर्फ तुमसेही हो,
हम खुदासे तुम्हेही मांगे ऐसी ख़ुशीकी आहट बन जाओ

कुछ दूर तुम भी साथ आओं,
तनहा राहोंमे हमारी हमसफ़र बन जाओ
हर सफ़र सिर्फ तुमसेही हो,
कभी न भूल पानेवाली जिंदगीकी आदत बन जाओ

कुछ दूर तुम भी साथ आओं,
आंखोंमे न खुलनेवाले ख्वाबसे बस जाओ
हर ख्वाब सिर्फ तुमसेही हो,
पूरी ज़िन्दगी एक ख्वाब लगे ऐसी प्यारिसी रात बन जाओ.......